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Sunday, 6 November 2016

दिल को छूने वाला

बस से उतरकर *जेब* में हाथ डाला।   मैं चौंक पड़ा।  जेब *कट* चुकी थी। *जेब* में था भी क्या? कुल *90* रुपए 
और *एक खत,*


जो मैंने *माँ* को लिखा था कि— मेरी *नौकरी* छूट गई है; अभी *पैसे* नहीं भेज पाऊँगा।
तीन दिनों से वह *पोस्टकार्ड* जेब में  पड़ा था। *पोस्ट* करने को *मन* ही नहीं कर रहा था। *90 रुपए* जा चुके थे। 
यूँ *90 रुपए* कोई *बड़ी रकम* नहीं थी, लेकिन जिसकी *नौकरी छूट* चुकी हो, उसके लिए *90 रुपए* ,, *900 से कम
नहीं होते।


कुछ दिन गुजरे।  *माँ* का *खत* मिला।
*पढ़ने* से पूर्व मैं *सहम* गया। जरूर *पैसे भेजने* को लिखा होगा।….लेकिन, 
*खत* पढ़कर  मैं *हैरान* रह गया। *माँ* ने लिखा था— *“बेटा,* तेरा *1000 रुपए*
का भेजा हुआ *मनीआर्डर* मिल गया है। तू कितना *अच्छा* है रे!…
*पैसे* भेजने में कभी *लापरवाही* नहीं बरतता।

मैं इसी *उधेड़- बुन* में लग गया कि आखिर *माँ* को *मनीआर्डर* किसने भेजा होगा?
कुछ *दिन* बाद,  एक और *पत्र* मिला। 
*चंद लाइनें* थीं— *आड़ी तिरछी।*
बड़ी *मुश्किल* से *खत* पढ़ पाया। लिखा था— 

भाई,*
*90 रुपए* तुम्हारे  और *910 रुपए* अपनी ओर से मिलाकर मैंने तुम्हारी *माँ* को *मनीआर्डर* भेज दिया है।
*फिकर न करना।…*माँ* तो सबकी *एक-जैसी* होती है न। *क्या तेरी और क्या मेरी* *वह क्यों भूखी रहे?…*



*तुम्हारा—जेबकतरा👌👌..*

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